छल

sweta parmar
1 min readJan 26, 2018

तेरी ज़िंदगी में ना सही अब मैं ज़िंदगी

पर तारीख़ों में तो आज भी मैं तेरी हूँ

यूँ तो अजीब हालत कर दी है ज़िंदगी ने

सांसें तो दे दी सज़ा के लिए पर

धड़कन छीन ही ली आख़िर उसने

अब तो कोई भी ना ग़लती थी मगर फिर भी

खेल तो आख़िर खेल ही लिया ये ज़िंदगी ने

मोहरा बनाया उसने झूठ और छल करके

खिलोना ही तो समझ लिया अब ज़िंदगी ने

झटक दिया हाथ एक पल में …फिर

मूड कर भी ना देखा क्या हुआ हाल

……. ज़िंदगी ने …….

चलेंगी सांसें फिर भी लेकिन तब तक

जब तक वादा ना पूरा कर दूँ जो किया ज़िंदगी से

जा तुझे आज़ाद किया ए ज़िंदगी

नई सांसें तूने खोज ली है लेकिन

ख़ूब छला है मुझे ….. मेरी ज़िंदगी ने !!!!

--

--